Thursday, November 11, 2010
§"यादेँ"§ यादोँ का एक सैलाब सा उमड़ पड़ा है। स्मृतियोँ/ विस्मृतियोँ का तांता सा लग गया है, समय के रास्ते मेँ। वे परिचिता/अपरिचिता पास आती हैँ, और दूर होती जाती हैँ, एक कतार मेँ। मैँ एक मोड़ पर खड़ा हूँ, तेरी याद की तलाश मेँ, बार बार भूल जाता हूँ, यादोँ के रेले मेँ कि, मैँ एक मोड़ पर खड़ा हूँ, तेरी याद की तलाश मेँ। अभी अभी सुबह थी, अब शाम हो गयी है, सिर्फ, सांझ के झुटपुटे, उनकी परछाइंयां, कुछ लम्बी हो गयीँ हैँ। जब कोई साया मेरे ऊपर से गुजरता है, मैँ चौँक जाता हूँ। (द्वारा: दिनेश पाण्डेय)
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प्रिय आत्मन्, ब्लाग पर लिखने के ये प्रथम प्रयास हैँ, गल्तियां होँगीँ, फिर भी अपनी टीप देकर उत्साह बनाये रखेँ। . . . . . . . . आपका अभिन्न, . . . .दिनेश पाण्डेय
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